Wednesday, April 4, 2012

कविता को लेकर व्यक्त की गईं अज्ञेय की चिंताएँ आज समकालीन कविता को एक ऊँचाई प्रदान करती हैं

पच्चीस वर्ष पहले आज ही के दिन बीसवीं सदी के महानतम सर्जक सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' ने अपने प्राण छोड़े थे | जिस तरह से हर बड़ा लेखक अपने देहावसान के बाद अपनी रचनाओं में जीवित रहता है, वैसे ही अज्ञेय भी हमारे बीच मौजूद रहे - हमारी परिचित और अभ्यस्त दुनिया को और ज्यादा सत्यापित, सघन, उत्कट और समृद्ध करते हुए | अज्ञेय सामाजिक होने की जगह अपने स्वयंरचित संसार में भले खड़े दिखाई देते हों, लेकिन तब भी वह उस सभ्यता से ही लड़ रहे थे जो व्यक्ति से उसकी सृजनात्मक कल्पना, मानवीय संवेदना और सौंदर्यबोध छीन रही थी | मलयज ने अपनी किताब में रेखांकित किया है कि 'साहित्य-क्षेत्र में कला-मूल्यों की लड़ाई अज्ञेय लगभग अकेले लड़ रहे थे |' अज्ञेय लेकिन सिर्फ कला-मूल्यों की लड़ाई ही नहीं लड़ रहे थे, बल्कि उसकी सार्थकता को बचाए और बनाए रखने के लिए परिवर्तित जीवन-यथार्थ को अपनी रचना-सामग्री बनाने के संघर्ष में विधिवत जुटे थे | अज्ञेय ने आधुनिक मनुष्य के आंतरिक और बाह्य यथार्थ की टकराहटों को ही नहीं, बल्कि उस आंतरिक व बाह्य यथार्थ की विभिन्न परतों और उसके द्धैध को भी चिन्हित किया - और सिर्फ चिन्हित ही नहीं किया उसे अपने युग का स्वर भी बना दिया | यह स्वर नितांत लौकिक और हमारे होने - न होने से जुड़ा था | इसमें न विराट नाटकीयता थी और न महत में विलीन हो जाने की आतुरता | आधुनिक जटिल संवेदनाओं को व्यक्त करना जटिल, प्रतीकात्मक और रहस्यवादी भाषा में चूँकि संभव नहीं था, इसलिए अज्ञेय ने कविता में भाषा को और अधिक सपाट व पठनीय बनाने की वकालत की | 'सर्जना के क्षण' में उन्होंने लिखा है : 'जो बाहर है, सतह पर है उसे बखानने के लिए एक नयी और सपाट भाषा की आवश्यकता थी - साधारण बोलचाल की ओर हम पहले ही बढ़ चुके थे और अब हमें भाषा का वह अभिधामूलक इकहरापन भी वांछनीय जान पड़ने लगा जो सामाजिक व्यवहार में इसलिए श्लाघ्य होता है कि कही हुई बात का अर्थ समझने में भूल न हो |' कविता को लेकर अज्ञेय की यही सब चिंताएँ आज समकालीन कविता को एक ऊँचाई प्रदान करती हैं | अज्ञेय का पूरा काव्य-मानस जिस तरह से 'परम्परा' के भीतर से बनता है, उसमें उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से समाज को 'मुक्त' करने की कोशिश की है और कोई भी अच्छा साहित्य यही करता है | उन्होंने अपनी खोजी दृष्टि से, अपनी आधुनिक व विद्रोही चेतना से समाज पर व्यापक प्रभाव छोड़ा है | जड़ता से मुक्ति दिलाने की इच्छा उनके समूचे लेखन में मौजूद रही है | भारतीय चिंतन में इसी को 'अपूर्वता' कहा गया है और इस अर्थ में अज्ञेय इसी 'अपूर्वता' के कवि ठहरते हैं |