राग तेलंग की एक छोटी सी कविता ने 'कविता और राजनीति' के रिश्ते को उलट-पलट कर देखने के लिये मजबूर किया | 'समकालीन भारतीय साहित्य' के नये अंक में राग तेलंग की 'एक दिन' शीर्षक कविता पढ़ी तो पहली बार में वह जोश से भरा एक बड़बोला बयान भर लगी | प्रकाशित पांच कविताओं में यही कविता मुझे सबसे कमजोर भी लगी | लेकिन मैंने महसूस किया कि कविताएँ पढ़ लेने के बाद के दिनों में मेरे जहन में घूमफिर कर 'एक दिन' की पंक्तियाँ ही जगह बनाने की कोशिश कर रहीं हैं | उनकी इस कोशिश में कब, मैं कविता और राजनीति के रिश्ते पर विचार करने लगा, यह मुझे खुद पता नहीं चला | कविता और राजनीति के रिश्ते पर विचार करते हुए मैं राग तेलंग की सभी कविताओं को एक बार फिर पढ़ गया, तो मैंने पाया कि व्यापक अर्थ में उनकी सभी कविताएँ राजनीतिक ही हैं | हालाँकि उनकी किसी भी कविता में कोई राजनीतिक संदर्भ साफ तौर पर नज़र नहीं आता है | उनकी कविताओं में, राजनीतिक संदर्भ में थोड़ा-बहुत साफ 'बोलती' कोई कविता दिखती है तो वह 'एक दिन' ही है | किंतु, 'कई चेहरों की एक आवाज' शीर्षक कविता भी कोई कम राजनीतिक अर्थ देती हुई नहीं लगी | इस कविता की दो पंक्तियों - 'एक चेहरे की कई आवाजें होती हैं / और कई चेहरों की एक आवाज होती है' - ने 'बताया' कि राग तेलंग को राजनीतिक संदर्भ का गहरा और सही बोध है | मुझे नहीं मालुम कि राग तेलंग ने सोच-विचार कर अपनी कविताओं में राजनीतिक संदर्भ दिये/लिये हैं; या वह उनकी सोच की स्वाभाविकता के चलते खुद व खुद प्रकट हो गये हैं | कविताओं के साथ प्रकाशित उनके परिचय में उनके कई-एक संग्रहों के प्रकाशित होने की जानकारी दी गई है, पर दुर्भाग्य से मैं उनका कोई संग्रह नहीं देख सका हूँ | कवि के रूप में राग तेलंग से मेरा 'परिचय' इन्हीं पांच कविताओं का है | इन कविताओं में राजनीतिक संदर्भ 'देखने' और पहचानने के बावजूद मैं इन्हें ठेठ राजनीतिक कविताओं के रूप में नहीं देखता हूँ |
राग तेलंग की 'समकालीन भारतीय साहित्य' में प्रकाशित कविताओं को मैं इस कारण ही राजनीतिक मान रहा हूँ, क्योंकि वह राजनीतिक संदर्भों को व्यक्त करतीं और उनसे साक्षात्कार करातीं दिखती हैं | कविता राजनीति से दो स्तरों पर साक्षात्कार करती/कराती है : एक घटना के स्तर पर और दूसरे, अभिप्रायों के स्तर पर | साक्षात्कार के स्तर ही कविता के स्तर हैं | यह स्तर बहुत-कुछ कवि के मन की बनावट और समय के दबाव पर निर्भर करते हैं | वास्तव में कवि के लिये राजनीति एक स्तर पर मनुष्य की हालत का साक्षात्कार है तो एक अन्य स्तर पर इस साक्षात्कार का साधन भी है | कवि का उद्देश्य कविता द्वारा चाहे अपनी अस्मिता की खोज करना हो, चाहे मनुष्य की दशा और समाज के संकट से साक्षात्कार करना हो, हर हालत में राजनीति का उपयोग किए बिना, और उसी के माध्यम से असली हालत को पहचाने बिना वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकता | कोई भी सार्थक और समर्थ कविता किसी-न-किसी स्तर पर परिवेश से मनुष्य के संबंध को, मनुष्य से मनुष्य के संबंध को, मनुष्य के अपने-आप से संबंध को नये सिरे से परिभाषित करती है जो राजनीति से बचकर और बाहर रहकर नहीं किया जा सकता |
एक तबका रहा है जो मानता और कहता रहा है कि राजनीति के संसर्ग से कविता भ्रष्ट हो जाती है | कविता को भ्रष्ट होने से 'बचाने' की इस तबके की कोशिशों के चलते कविता से उस जीवंत और सर्जनात्मक तत्त्व को निकाल बाहर करने की कार्रवाई की गई जो कविता को मनुष्य का सबसे मूल्यवान और अनोखा दस्तावेज बनाता है | इस तबके के लोगों ने इस तथ्य की अनदेखी करने की ही कोशिश की कि कविता का और राजनीति का संबंध कोई नया नहीं है | ऋग्वेद और महाभारत से लगाकर शूद्रक, विशाखदत्त, चंदवरदाई और भारतेंदु तक न जाने कितने नाम गिनाये जा सकते हैं जो अपनी रचनाओं में राजनीति को किसी न किसी रूप में अभिव्यक्त करते रहे हैं | व्यापक जीवनदृष्टि और 'अनुभूति की प्रामाणिकता' के नाम पर प्रत्यक्ष अनुभव के बीच संबंध खोजने और स्पष्ट करने के कवियों के अंतःसंघर्ष के साथ लिखी गई कविताओं में - भले ही वह राजनीति का निषेध करने का दावा करते हुए लिखी गई हों - राजनीति को साफ-साफ देखा/पहचाना गया | कविता कभी भी राजनीति से अलग नहीं हो पाई | किसी-किसी कविता को राजनीति से अलग बताने/दिखाने की कोशिश हालाँकि खूब हुई | कविता और राजनीति के रिश्ते पर तमाम बार बहसें हो चुकी हैं, लेकिन फिर भी यह रिश्ता विवाद का विषय बना हुआ है, तो इसका कारण भी 'राजनीति' ही है | मजे की बात यह है कि हर कोई मानता है कि लेखक का कर्तव्य है कि वह सदा अपने आधारभूत सत्य का उदघाटन करता रहे, और विकृति के पीछे छिपे सत्य का आविष्कार करता रहे | ऐसा करते हुए कोई 'राजनीति' से भला कैसे बच सकता है ?
'समकालीन भारतीय साहित्य' में प्रकाशित राग तेलंग की कविताओं में वैचारिकता की जो सक्रियता है, वह इन कविताओं को उल्लेखनीय बनाती है | राग तेलंग की इन कविताओं में राजनीतिक संदर्भ तो व्यक्त होता है, लेकिन वह यहाँ इस स्वाभाविकता से व्यक्त होता है कि विचार और संवेदना का पारंपरिक द्वैत यहाँ व्यर्थ हो जाता है लेकिन जिन्हें किसी निश्चित विचारधारा का समर्थन या आश्वासन प्राप्त नहीं है | जाहिर है कि एक कवि के रूप में उनके कुछ आग्रह और सरोकार हैं जो उनकी इन कविताओं में स्पष्ट रूप से झलकते हैं | इनकी किसी न किसी तरह की परंपरा उनके कृतित्त्व में खोजी जा सकती है, यह मैं इसलिए नहीं कह सकता क्योंकि इनसे पहले की उनकी कविताएँ मैंने नहीं देखी हैं | मैं विश्वास जरूर कर सकता हूँ कि 'समकालीन भारतीय साहित्य' के नये अंक में प्रकाशित राग तेलंग की कविताएँ उनकी पिछली कविताओं से आगे की कविताएँ ही होंगी |
Sunday, January 31, 2010
Monday, January 25, 2010
कविता को 'कला' मानने की वकालत और शमशेर बहादुर सिंह की कविता
भारत के शीर्ष कवि शमशेर बहादुर सिंह के जन्म का सौंवा वर्ष शुरू होते होते एक दिलचस्प इत्तफाक के चलते इटली के ख्यातिप्राप्त आलोचक रोबेर्तो कालास्सो की इस दशक के शुरू में आई पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद 'लिटरेचर एण्ड द गॉड्स' पढ़ने को मिला | इसमें कविता को 'कला' मानने की नये सिरे से वकालत की गयी है | 'लिटरेचर एण्ड द गॉड्स' के शमशेर बहादुर सिंह के जन्म का सौंवा वर्ष शुरू होते होते 'मिलने' को मैंने एक दिलचस्प इत्तफाक इसीलिए कहा, क्योंकि शमशेर बहादुर सिंह की कविता को कविता से भी ज्यादा कला के रूप में ही देखा/पहचाना गया है | शमशेर की कविता की दुनिया अर्थ की नहीं, बल्कि ध्वनियों की - तिलस्मी व जादुई ध्वनियों की - दुनिया है | इसीलिए ख्यातिप्राप्त आलोचक रोबेर्तो कालास्सो की कविता को 'कला' मानने की वकालत को पढ़ते हुए मुझे सहज स्वाभाविक रूप से शमशेर बहादुर सिंह की कविता ही याद आई | रोबेर्तो प्रचलित अर्थ में 'आधुनिकतावादी' हैं, इसलिए अपने मत की स्थापना के लिये उन्होंने नीत्शे, प्रूस्त आदि का खूब सहारा लिया | पुस्तक के एक प्रमुख और अंतिम लेख 'एब्सोल्युट लिटरेचर' में वे कहते हैं कि साहित्य विचार के भारी फर्शी पत्थरों के बीच घास की तरह उगता है | फिर यह कि यदि ज्ञान सिर्फ खोज न होकर आविष्कार है, तो उसका मतलब यह है कि उसमें अनुरूपता का प्रबल तत्त्व है | उसके बाद वे नीत्शे का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं : 'सत्य क्या है ? रूपकों की एक चलन्त सेना |' नीत्शे रूपकों के निर्माण को मनुष्य की बुनियादी प्रकृति बतलाते हैं, जिसके बाद उसका रास्ता यथार्थ से हटकर मिथक और सामान्यतः कला की तरफ चला जाता है | प्रूस्त कवि के भीतर सक्रिय रहस्यमय नियमों की बात करते हुए यह मत प्रकट करते हैं कि वह सभी चीजों के सौंदर्य का अनुभव करता है और हमें कराता है, जैसे उसके लिये पानी का गिलास हीरों से कम नहीं, न ही हीरे उसके लिये पानी के गिलास से कम हैं | स्वभावतः उन्होंने कविता का जन्म उन क्षणों में माना है, जब कवि अपने को चेतन मानस और भौतिक जगत से अलग कर लेता है | ये क्षण 'अभी' बहुत सशक्त हैं, लेकिन जल्दी ही गुम हो जा सकते हैं; क्योंकि कवि अधिक देर तक उनका बंदी नहीं रह सकता, उनसे निकल कर अपनी वास्तविक दुनिया में लौट आ सकता है और एक खास ढंग से जीने का रास्ता अख्तियार कर उस 'खजाने' को गँवा दे सकता है, जिसे वह अपने भीतर ढो रहा होता है | जाहिर है कि जैसे मात्र विचार कविता नहीं है, वैसे ही उसका आत्यंतिक रूप से निषेध करनेवाली मात्र यह कला भी नहीं | शमशेर बहादुर सिंह ने दीर्घ स्वरों के द्वारा अपनी कविता में अर्थगहनता भरने का जो कौशल 'दिखाया' है, वह अद्भुत तो है ही; साथ ही रोबेर्तो कालास्सो के कहे हुए को भी समझने में मदद करता है |
शमशेर का रचना - संसार इंद्रधनुषी संसार है जिसमें सूर्य है, नदियाँ हैं, पहाड़ हैं, चिड़ियाँ हैं, प्रार्थना है, शाम है और एक भौतिक तथा वैदिक अकेलापन है | यह संसार इतना निजी, बल्कि आत्मीय है कि वह शमशेर के लिये जैसे लक्ष्मण-रेखा बन गया | जब भी शमशेर ने इस लक्ष्मण-रेखा को पार करने की कोशिश की, उनकी कविता भंग होती हुई दिखी, उसकी शर्तें और बनावट चरमराती हुई लगी | इसके बावजूद उन्होंने बार-बार इस लक्ष्मण-रेखा को पार करने का काम किया | शमशेर बार-बार स्वयं अपनी ही खींची रेखा को लाँघ कर एक ऐसी दुनिया में प्रवेश कर जाते रहे जिसकी ध्वनियाँ और आकार पराये नज़र आते | इसी क्रम में शमशेर ने राजनीतिक चेतनावाली भी कविताएँ लिखी, लेकिन उन कविताओं को उनकी सबसे कमजोर कविताओं के रूप में देखा / पहचाना गया | उनकी ऐसी कविताओं में 'अम्न का राग' शीर्षक कविता को हालाँकि एक अपवाद के
रूप में रेखांकित किया जा सकता है, जिसे सही अर्थों में एक महान कविता माना गया | शमशेर वास्तव में प्रेम और सौंदर्य के विलक्षण गायक थे और उन्हीं के माध्यम से उन्होंने अपने युग की समस्याओं से उद्वेलित होकर अपनी कविताओं में बहुत उदात्त रूप में मानव-मूल्यों की स्थापना की | उनकी शाब्दिक मितव्ययिता, उनका
सूक्ष्म लय-बोध और उनकी भव्य बिम्ब-योजना हिंदी कविता की एक उपलब्धि है | इसका प्रमाण उनके आरंभिक दोनों कविता संग्रहों - 'कुछ कविताएँ' और 'कुछ और कविताएँ' - में देखा / पाया जा सकता है |
शमशेर की कविता का ढांचा बुनियादी तौर पर एक सिंबॉलिस्ट कवि की कविता का ढांचा है | वह घटनाओं का संहार कर, स्थान और स्थितियों का लोप कर, केवल संगीत और चित्र की सृष्टि करता है | माना गया है कि शमशेर बहादुर सिंह की कविता अपनी अवधारणा में चित्रकला है, और अपने प्रभाव में संगीत है | उसे केवल कविता कहना, उसके प्रभाव व उसकी उपलब्धियों को कम करके आंकना और छोटा करना है | भारत के
ख्यातिप्राप्त कवि शमशेर बहादुर सिंह ने जो बात अपनी कविता से कही, इटली के ख्यातिप्राप्त आलोचक रोबेर्तो कालास्सो ने वही बात अपनी पुस्तक 'लिटरेचर एण्ड द गॉड्स' में कही है |
शमशेर का रचना - संसार इंद्रधनुषी संसार है जिसमें सूर्य है, नदियाँ हैं, पहाड़ हैं, चिड़ियाँ हैं, प्रार्थना है, शाम है और एक भौतिक तथा वैदिक अकेलापन है | यह संसार इतना निजी, बल्कि आत्मीय है कि वह शमशेर के लिये जैसे लक्ष्मण-रेखा बन गया | जब भी शमशेर ने इस लक्ष्मण-रेखा को पार करने की कोशिश की, उनकी कविता भंग होती हुई दिखी, उसकी शर्तें और बनावट चरमराती हुई लगी | इसके बावजूद उन्होंने बार-बार इस लक्ष्मण-रेखा को पार करने का काम किया | शमशेर बार-बार स्वयं अपनी ही खींची रेखा को लाँघ कर एक ऐसी दुनिया में प्रवेश कर जाते रहे जिसकी ध्वनियाँ और आकार पराये नज़र आते | इसी क्रम में शमशेर ने राजनीतिक चेतनावाली भी कविताएँ लिखी, लेकिन उन कविताओं को उनकी सबसे कमजोर कविताओं के रूप में देखा / पहचाना गया | उनकी ऐसी कविताओं में 'अम्न का राग' शीर्षक कविता को हालाँकि एक अपवाद के
रूप में रेखांकित किया जा सकता है, जिसे सही अर्थों में एक महान कविता माना गया | शमशेर वास्तव में प्रेम और सौंदर्य के विलक्षण गायक थे और उन्हीं के माध्यम से उन्होंने अपने युग की समस्याओं से उद्वेलित होकर अपनी कविताओं में बहुत उदात्त रूप में मानव-मूल्यों की स्थापना की | उनकी शाब्दिक मितव्ययिता, उनका
सूक्ष्म लय-बोध और उनकी भव्य बिम्ब-योजना हिंदी कविता की एक उपलब्धि है | इसका प्रमाण उनके आरंभिक दोनों कविता संग्रहों - 'कुछ कविताएँ' और 'कुछ और कविताएँ' - में देखा / पाया जा सकता है |
शमशेर की कविता का ढांचा बुनियादी तौर पर एक सिंबॉलिस्ट कवि की कविता का ढांचा है | वह घटनाओं का संहार कर, स्थान और स्थितियों का लोप कर, केवल संगीत और चित्र की सृष्टि करता है | माना गया है कि शमशेर बहादुर सिंह की कविता अपनी अवधारणा में चित्रकला है, और अपने प्रभाव में संगीत है | उसे केवल कविता कहना, उसके प्रभाव व उसकी उपलब्धियों को कम करके आंकना और छोटा करना है | भारत के
ख्यातिप्राप्त कवि शमशेर बहादुर सिंह ने जो बात अपनी कविता से कही, इटली के ख्यातिप्राप्त आलोचक रोबेर्तो कालास्सो ने वही बात अपनी पुस्तक 'लिटरेचर एण्ड द गॉड्स' में कही है |
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