Saturday, December 26, 2009

सीताकांत महापात्र का कहना है कि कविता उनके लिये इंटेंस रियलाइजेशन का क्षण है; एक तरह से आत्मविस्तार का भी


कविता की ज़रूरत और कविता के साथ अपने लगाव की स्मृति पर बात करते हुए सीताकांत महापात्र ने एक बार कहा था : 'कविता, मैं समझता हूँ कि मेरी ही नहीं, इस कर्म को गंभीरता से लेने वाले किसी भी कवि की एक आंतरिक ज़रूरत है | निजी तौर पर मैं यह मानता हूँ कि अपने होने की सार्थकता के अनुभव के लिये कविता, मेरे लिये जरूरी है | कविता एक अलग और जीवित दुनिया है | दरअसल, कविता इंटेंस रियलाइजेशन का क्षण है | सामान्य जीवन औसतपन में गर्क है | कविता हमारे निरंतर पुनर्नवीकरण की प्रक्रिया है | यांत्रिकता की आपाधापी में हमको कहीं गहरे में स्थिर करती हुई | हमें अपनी वास्तविक दुनिया के निकट लाती हुई |'
सीताकांत महापात्र उड़िया के अग्रणी कवि हैं, जो उड़िया साहित्य अकादमी, केंद्रीय साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ और विश्व मिलन कविता पुरस्कार से सम्मानित हुए हैं तथा एन्थ्रोपॉलॉजी के अनेक अंतर्राष्ट्रीय संकलनों में जिन्हें सम्मिलित किया गया है | वह पद्म भूषण सम्मान से भी सम्मानित हो चुके हैं | उनकी कविताओं के अनुवाद विश्व की कई भाषाओँ में हुए हैं | कविता की ज़रूरत और कविता के साथ अपने लगाव की स्मृति पर अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा था : 'स्मृति कवि के जीवन में महत्वपूर्ण रोल अदा करती है | सच पूछा जाये तो यह स्मृति का ही खेल है | यह स्मृति कोरी आत्मपरकता नहीं है | कविता में निजी स्मृति बहुमूल्य है, लेकिन उसकी रचनात्मकता के लिये कवि को गहरे में संघर्ष करना होता है | मैं मानता हूँ कि कविता व्यापक अमानवीयकरण की प्रक्रिया में एक जरूरी हस्तक्षेप है, लेकिन इसकी प्रक्रिया मात्र आलोचनात्मक नहीं है | मैं अपने लिये यह बात विशेष रूप से कहना चाहता हूँ कि आयरनी और सेटायर मेरे औजार नहीं हैं, जबकि आधुनिक कहे जाने वाले बहुत से कवियों में इनका फैशन सा है | मेरे लिये कविता करुणा का लोक है | मानवीय जिजीविषा के प्रति मेरा सम्मान, साधारण आदमी की संवेदनशीलता का सम्मान है | आपाधापी की दुनिया में, मैं अभी भी, रवि ठाकुर के 'मिट्टी के दिये' को जरूरी मानता हूँ |'
सीताकांत महापात्र ने कहा था : 'दरअसल कविता के साथ मेरे लगाव का निजी इतिहास, करुणा को अपने भीतर अनुभव करने का साक्ष्य है | बहुत पहले से एक धार्मिक वातावरण में जीते हुए बचपन से ही, मैं मनुष्य के गहरे दुःख को जानता हूँ | बीमारी और मृत्यु से जुड़े अनुभव मेरे मन में बहुत पुराने दिनों से संचित हैं | मेरी कविता के पीछे आत्मीय लोगों की एक दुनिया है | मेरी कविता कम से कम मेरे लिये वास्तविक लोगों का एक संसार है | अभी मुझे बचपन के एक दोस्त की याद आ रही है | वह अब नहीं है | एक शाम वह खेल रहा था | पूरी तरह से स्वस्थ व सक्रिय | सुबह उसकी मृत्यु हो गई | यह घटना मैं आज भी नहीं भूल पाता हूँ | सिर्फ मृत्यु का भय नहीं - बल्कि मानवीय चेष्टा की सीमा का करुण अहसास भी | मैं समझता हूँ कि कुछ स्मृतियाँ जीवन भर आपके मन को मथती रहती हैं | कम से कम मैं तो यह मानता हूँ कि इसे भूल सकना मेरे लिये मुश्किल है | अवसाद की छाया अगर मेरी कविता में है, तो उसके पीछे इसी तरह के अनुभव हैं | लेकिन इसके बावजूद मैं यह मानता हूँ कि कविता हताशा का चरम नहीं है | मैं उस हताशा का विरोधी हूँ जो आधुनिकता के नाम पर इंटेलेक्चुअल मुद्रा की तरह परोसी जा रही है |' 
सीताकांत महापात्र ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा : 'जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि कविता मेरे लिये इंटेंस रियलाइजेशन का क्षण है | एक तरह से मेरे आत्मविस्तार का भी | कविता मुझे सिकोड़ने वाली चीज नहीं है - यानि वह ज़िन्दगी से विथ-ड्रा करने जैसा कोई अनुभव कतई नहीं है | कविता मेरे लिये प्रार्थना है | अपने आसपास को दुबारा अपनी भाषा में रचने की इस कोशिश के बारे में सारा कुछ समझाकर कह सकना मुश्किल ही है | हालाँकि मैंने कुछ कविताएँ इसी विषय पर लिखी हैं, ताकि मैं जान सकूं कि कविता में रहने की मेरी आत्यंतिक निजता क्या है ? मेरी ऐसी कविताओं को अगर आप पढ़ें, तो शायद आप महसूस कर सकेंगे कि शब्दों के साथ मेरे खेल की गति का रंग-रूप क्या है ? किस तरह अचानक कविता शब्द हो जाती है और मुझे अनुभव के किसी सांद्र क्षण में स्थिर करती हुई कविता मेरे लिये कितनी जरूरी हो जाती है | हालाँकि मुमकिन यह भी है कि दूसरों को यह सब बिल्कुल बेमतलब भी लगे |'