भारत के शीर्ष कवि शमशेर बहादुर सिंह के जन्म का सौंवा वर्ष शुरू होते होते एक दिलचस्प इत्तफाक के चलते इटली के ख्यातिप्राप्त आलोचक रोबेर्तो कालास्सो की इस दशक के शुरू में आई पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद 'लिटरेचर एण्ड द गॉड्स' पढ़ने को मिला | इसमें कविता को 'कला' मानने की नये सिरे से वकालत की गयी है | 'लिटरेचर एण्ड द गॉड्स' के शमशेर बहादुर सिंह के जन्म का सौंवा वर्ष शुरू होते होते 'मिलने' को मैंने एक दिलचस्प इत्तफाक इसीलिए कहा, क्योंकि शमशेर बहादुर सिंह की कविता को कविता से भी ज्यादा कला के रूप में ही देखा/पहचाना गया है | शमशेर की कविता की दुनिया अर्थ की नहीं, बल्कि ध्वनियों की - तिलस्मी व जादुई ध्वनियों की - दुनिया है | इसीलिए ख्यातिप्राप्त आलोचक रोबेर्तो कालास्सो की कविता को 'कला' मानने की वकालत को पढ़ते हुए मुझे सहज स्वाभाविक रूप से शमशेर बहादुर सिंह की कविता ही याद आई | रोबेर्तो प्रचलित अर्थ में 'आधुनिकतावादी' हैं, इसलिए अपने मत की स्थापना के लिये उन्होंने नीत्शे, प्रूस्त आदि का खूब सहारा लिया | पुस्तक के एक प्रमुख और अंतिम लेख 'एब्सोल्युट लिटरेचर' में वे कहते हैं कि साहित्य विचार के भारी फर्शी पत्थरों के बीच घास की तरह उगता है | फिर यह कि यदि ज्ञान सिर्फ खोज न होकर आविष्कार है, तो उसका मतलब यह है कि उसमें अनुरूपता का प्रबल तत्त्व है | उसके बाद वे नीत्शे का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं : 'सत्य क्या है ? रूपकों की एक चलन्त सेना |' नीत्शे रूपकों के निर्माण को मनुष्य की बुनियादी प्रकृति बतलाते हैं, जिसके बाद उसका रास्ता यथार्थ से हटकर मिथक और सामान्यतः कला की तरफ चला जाता है | प्रूस्त कवि के भीतर सक्रिय रहस्यमय नियमों की बात करते हुए यह मत प्रकट करते हैं कि वह सभी चीजों के सौंदर्य का अनुभव करता है और हमें कराता है, जैसे उसके लिये पानी का गिलास हीरों से कम नहीं, न ही हीरे उसके लिये पानी के गिलास से कम हैं | स्वभावतः उन्होंने कविता का जन्म उन क्षणों में माना है, जब कवि अपने को चेतन मानस और भौतिक जगत से अलग कर लेता है | ये क्षण 'अभी' बहुत सशक्त हैं, लेकिन जल्दी ही गुम हो जा सकते हैं; क्योंकि कवि अधिक देर तक उनका बंदी नहीं रह सकता, उनसे निकल कर अपनी वास्तविक दुनिया में लौट आ सकता है और एक खास ढंग से जीने का रास्ता अख्तियार कर उस 'खजाने' को गँवा दे सकता है, जिसे वह अपने भीतर ढो रहा होता है | जाहिर है कि जैसे मात्र विचार कविता नहीं है, वैसे ही उसका आत्यंतिक रूप से निषेध करनेवाली मात्र यह कला भी नहीं | शमशेर बहादुर सिंह ने दीर्घ स्वरों के द्वारा अपनी कविता में अर्थगहनता भरने का जो कौशल 'दिखाया' है, वह अद्भुत तो है ही; साथ ही रोबेर्तो कालास्सो के कहे हुए को भी समझने में मदद करता है |
शमशेर का रचना - संसार इंद्रधनुषी संसार है जिसमें सूर्य है, नदियाँ हैं, पहाड़ हैं, चिड़ियाँ हैं, प्रार्थना है, शाम है और एक भौतिक तथा वैदिक अकेलापन है | यह संसार इतना निजी, बल्कि आत्मीय है कि वह शमशेर के लिये जैसे लक्ष्मण-रेखा बन गया | जब भी शमशेर ने इस लक्ष्मण-रेखा को पार करने की कोशिश की, उनकी कविता भंग होती हुई दिखी, उसकी शर्तें और बनावट चरमराती हुई लगी | इसके बावजूद उन्होंने बार-बार इस लक्ष्मण-रेखा को पार करने का काम किया | शमशेर बार-बार स्वयं अपनी ही खींची रेखा को लाँघ कर एक ऐसी दुनिया में प्रवेश कर जाते रहे जिसकी ध्वनियाँ और आकार पराये नज़र आते | इसी क्रम में शमशेर ने राजनीतिक चेतनावाली भी कविताएँ लिखी, लेकिन उन कविताओं को उनकी सबसे कमजोर कविताओं के रूप में देखा / पहचाना गया | उनकी ऐसी कविताओं में 'अम्न का राग' शीर्षक कविता को हालाँकि एक अपवाद के
रूप में रेखांकित किया जा सकता है, जिसे सही अर्थों में एक महान कविता माना गया | शमशेर वास्तव में प्रेम और सौंदर्य के विलक्षण गायक थे और उन्हीं के माध्यम से उन्होंने अपने युग की समस्याओं से उद्वेलित होकर अपनी कविताओं में बहुत उदात्त रूप में मानव-मूल्यों की स्थापना की | उनकी शाब्दिक मितव्ययिता, उनका
सूक्ष्म लय-बोध और उनकी भव्य बिम्ब-योजना हिंदी कविता की एक उपलब्धि है | इसका प्रमाण उनके आरंभिक दोनों कविता संग्रहों - 'कुछ कविताएँ' और 'कुछ और कविताएँ' - में देखा / पाया जा सकता है |
शमशेर की कविता का ढांचा बुनियादी तौर पर एक सिंबॉलिस्ट कवि की कविता का ढांचा है | वह घटनाओं का संहार कर, स्थान और स्थितियों का लोप कर, केवल संगीत और चित्र की सृष्टि करता है | माना गया है कि शमशेर बहादुर सिंह की कविता अपनी अवधारणा में चित्रकला है, और अपने प्रभाव में संगीत है | उसे केवल कविता कहना, उसके प्रभाव व उसकी उपलब्धियों को कम करके आंकना और छोटा करना है | भारत के
ख्यातिप्राप्त कवि शमशेर बहादुर सिंह ने जो बात अपनी कविता से कही, इटली के ख्यातिप्राप्त आलोचक रोबेर्तो कालास्सो ने वही बात अपनी पुस्तक 'लिटरेचर एण्ड द गॉड्स' में कही है |
शमशेर पर लिखी आपकी टिप्पणी अच्छी लगी | शमशेर की कविता पर विचार करते हुए हमें यह ध्यान रखना ही चाहिए कि वह जिस युग में विकसित हुई थी, वह नई कविता का था : सौंदर्य और प्रेम से अनासक्त ही नहीं, बल्कि उसका प्रतिरोधी भी | उस समय प्रगतिशीलता का झंडा भी लहरा रहा था : खासे जोश व उत्साह के साथ | इन्हीं स्थितियों के बीच शमशेर की अकेली, ग़मगीन व अभावग्रस्त ज़िन्दगी थी | आम तौर पर समय और कवि के जीवनानुभव जिस एक बिंदु पर मिल जाते हैं, वही कविता का केंद्र होता है | हमने देखा है कि बहुत से किताबी कवियों के मुकाबले शमशेर का जीवन सच्चे सर्वहारा का जीवन था; कम्यून और कम्युनिस्ट पार्टी ने भी उन्हें प्रभावित किया था; नई कविता में भी उनकी प्रभावी साझेदारी थी - लेकिन फिर भी शमशेर सबसे अलग थे | क्योंकि समय और जीवनानुभव जिस बिंदु पर मिले थे उनसे कहीं हटकर था उनके भीतरी भूकंप का केंद्र | वे वहीं से परिचालित थे, जहाँ से अमृत ही नहीं विष भी निकलता है | प्रेम सागर के मंथन से जो जहर निकलता है, वह शमशेर ने जिया भी और पिया भी | यही वह पीड़ा है जो उनके काव्य में अपार करुणा में बदली है | सारी मानवता के दुःख पहचानने और उसे निजी स्तर पर भोगने के रूप में, तमाम विषमय को भोगते हुए उसके विरूद्ध आंतरिक गहन विद्रोह के रूप में | इसी चीज ने उनकी कविता को और कवि के रूप में उन्हें महत्त्वपूर्ण बनाया |
ReplyDeleteशमशेर बहादुर सिंह की कविता सचमुच कला ही है | उनकी कविता में आने वाले अन्तराल या स्पेस खासे व्यंजक हैं | वह एक बात को दूसरी से अलग करने भर के लिये नहीं हैं, बल्कि अनेक तरह से बोलते हुए-से हैं | कई बार वह पाठक को आत्मान्वेषण का अवसर देते हैं; कई बार वह शब्दों की उपस्थिती से उत्पन्न होने वाली भाव संकुलता से बचाता है; कई बार भाव या अनुभूति को विकसित करता है; कई बार भावों को गहरा करता है; कई बार अतीत के प्रसंग को नए कथ्य से जोड़ता है | कुल मिला कर कहा जा सकता है कि शमशेर की कविता में व्यक्त होने वाले अंतराल पाठक की रचनात्मक भागीदारी बढ़ाते हैं और कवि-कथन को नए सर्जनात्मक आयाम देते हैं |
ReplyDeleteशमशेर कवि के रूप में हर पल प्रयोगधर्मी लगते हैं तो शायद इसका कारण यही है कि कविता को उन्होंने कला के रूप में ही पहचाना/पाया है | ऐसा लगता है कि जैसे वह चित्रों में सोचते हैं जो कई बार स्वयं अमूर्त होते हैं; और कविता में स्थानांतरित होकर जो और भी अमूर्त व सूक्ष्म हो जाते हैं |
ReplyDeleteमाना जाता है और कहा भी गया है कि किसी भी रचनाकार के व्यक्तित्व के मूल में कोई एक चीज, कोई कला-रूप होता है जो उसकी रचनाशीलता के भीतर अमूर्त रूप से संचारित होता है | इस बात को शमशेर जी के संदर्भ में पहचानने व समझने की कोशिश करें तो हम पाते हैं कि उनकी कविता के भीतर उनका चित्रकार बैठा है | कई बार वह दिखता है, कई बार वह नहीं भी दिखता है - लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वह वहाँ नहीं है | मुक्तिबोध ने उनके बारे में कहा ही है कि 'शमशेर ने अपने हृदय में आसीन चित्रकार को पदच्युत कर के कवि को अधिष्ठित किया है |' इसीलिए शमशेर जी की कविता के संदर्भ में कविता को 'कला' मानने की वकालत प्रासंगिक लगी |
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें
ReplyDeleteइस नए ब्लॉग के साथ आपका हिन्दी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. आपसे बहुत उम्मीद रहेगी हमें .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteइस नए ब्लॉग के साथ आपका हिन्दी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. आपसे बहुत उम्मीद रहेगी हमें .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDelete1. shamsher is a poet of feeling.he has his own world and site. from where he updown in this world. 2.he has concern with men. his poetic behaviour make easy to enter in ethical path.
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