Sunday, January 31, 2010

राग तेलंग की कविताएँ राजनीतिक संदर्भों को व्यक्त करतीं और उनसे साक्षात्कार करातीं दिखती हैं

राग तेलंग की एक छोटी सी कविता ने 'कविता और राजनीति' के रिश्ते को उलट-पलट कर देखने के लिये मजबूर किया | 'समकालीन भारतीय साहित्य' के नये अंक में राग तेलंग की 'एक दिन' शीर्षक कविता पढ़ी तो पहली बार में वह जोश से भरा एक बड़बोला बयान भर लगी | प्रकाशित पांच कविताओं में यही कविता मुझे सबसे कमजोर भी    लगी | लेकिन मैंने महसूस किया कि कविताएँ पढ़ लेने के बाद के दिनों में मेरे जहन में घूमफिर कर 'एक दिन' की पंक्तियाँ ही जगह बनाने की कोशिश कर रहीं हैं | उनकी इस कोशिश में कब, मैं कविता और राजनीति के रिश्ते पर विचार करने लगा, यह मुझे खुद पता नहीं चला | कविता और राजनीति के रिश्ते पर विचार करते हुए मैं राग तेलंग की सभी कविताओं को एक बार फिर पढ़ गया, तो मैंने पाया कि व्यापक अर्थ में उनकी सभी कविताएँ राजनीतिक ही हैं | हालाँकि उनकी किसी भी कविता में कोई राजनीतिक संदर्भ साफ तौर पर नज़र नहीं आता है | उनकी कविताओं में, राजनीतिक संदर्भ में थोड़ा-बहुत साफ 'बोलती' कोई कविता दिखती है तो वह 'एक दिन' ही है | किंतु, 'कई चेहरों की एक आवाज' शीर्षक कविता भी कोई कम राजनीतिक अर्थ देती हुई नहीं लगी | इस कविता की दो पंक्तियों - 'एक चेहरे की कई आवाजें होती हैं / और कई चेहरों की एक आवाज होती है' - ने 'बताया' कि राग तेलंग को राजनीतिक संदर्भ का गहरा और सही बोध है | मुझे नहीं मालुम कि राग तेलंग ने सोच-विचार कर अपनी कविताओं में राजनीतिक संदर्भ दिये/लिये हैं; या वह उनकी सोच की स्वाभाविकता के चलते खुद व खुद प्रकट हो गये हैं | कविताओं के साथ प्रकाशित उनके परिचय में उनके कई-एक संग्रहों के प्रकाशित होने की जानकारी दी गई है, पर दुर्भाग्य से मैं उनका कोई संग्रह नहीं देख सका हूँ | कवि के रूप में राग तेलंग से मेरा 'परिचय' इन्हीं पांच कविताओं का है | इन कविताओं में राजनीतिक संदर्भ 'देखने' और पहचानने के बावजूद मैं इन्हें ठेठ राजनीतिक कविताओं के  रूप में नहीं देखता हूँ |
राग तेलंग की 'समकालीन भारतीय साहित्य' में प्रकाशित कविताओं को मैं इस कारण ही राजनीतिक मान रहा हूँ, क्योंकि वह राजनीतिक संदर्भों को व्यक्त करतीं और उनसे साक्षात्कार करातीं दिखती हैं | कविता राजनीति से दो स्तरों पर साक्षात्कार करती/कराती है : एक घटना के स्तर पर और दूसरे, अभिप्रायों के स्तर पर | साक्षात्कार के स्तर ही कविता के स्तर हैं | यह स्तर बहुत-कुछ कवि के मन की बनावट और समय के दबाव पर निर्भर करते हैं | वास्तव में कवि के लिये राजनीति एक स्तर पर मनुष्य की हालत का साक्षात्कार है तो एक अन्य स्तर पर इस साक्षात्कार का साधन भी है | कवि का उद्देश्य कविता द्वारा चाहे अपनी अस्मिता की खोज करना हो, चाहे मनुष्य की दशा और समाज के संकट से साक्षात्कार करना हो, हर हालत में राजनीति का उपयोग किए बिना, और उसी के माध्यम से असली हालत को पहचाने बिना वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकता | कोई भी सार्थक और समर्थ कविता किसी-न-किसी स्तर पर परिवेश से मनुष्य के संबंध को, मनुष्य से मनुष्य के संबंध को, मनुष्य के अपने-आप से संबंध को नये सिरे से परिभाषित करती है जो राजनीति से बचकर और बाहर रहकर नहीं किया जा सकता |
एक तबका रहा है जो मानता और कहता रहा है कि राजनीति के संसर्ग से कविता भ्रष्ट हो जाती है | कविता को भ्रष्ट होने से 'बचाने' की इस तबके की कोशिशों के चलते कविता से उस जीवंत और सर्जनात्मक तत्त्व को निकाल बाहर करने की कार्रवाई की गई जो कविता को मनुष्य का सबसे मूल्यवान और अनोखा दस्तावेज बनाता है | इस तबके के लोगों ने इस तथ्य की अनदेखी करने की ही कोशिश की कि कविता का और राजनीति का संबंध कोई नया नहीं है | ऋग्वेद और महाभारत से लगाकर शूद्रक, विशाखदत्त, चंदवरदाई और भारतेंदु तक न जाने कितने नाम गिनाये जा सकते हैं जो अपनी रचनाओं में राजनीति को किसी न किसी रूप में अभिव्यक्त करते रहे हैं |  व्यापक जीवनदृष्टि और 'अनुभूति की प्रामाणिकता' के नाम पर प्रत्यक्ष अनुभव के बीच संबंध खोजने और स्पष्ट करने के कवियों के अंतःसंघर्ष के साथ लिखी गई कविताओं में - भले ही वह राजनीति का निषेध करने का दावा करते हुए लिखी गई हों - राजनीति  को साफ-साफ देखा/पहचाना गया | कविता कभी भी राजनीति से अलग नहीं हो पाई | किसी-किसी कविता को राजनीति से अलग बताने/दिखाने की कोशिश हालाँकि खूब हुई | कविता और राजनीति के रिश्ते पर तमाम बार बहसें हो चुकी हैं, लेकिन फिर भी यह रिश्ता विवाद का विषय बना हुआ है, तो इसका कारण भी 'राजनीति' ही है | मजे की बात यह है कि हर कोई मानता है कि लेखक का कर्तव्य है कि वह सदा अपने आधारभूत सत्य का उदघाटन करता रहे, और विकृति के पीछे छिपे सत्य का आविष्कार करता रहे | ऐसा करते हुए कोई 'राजनीति' से भला कैसे बच सकता है ? 
'समकालीन भारतीय साहित्य' में प्रकाशित राग तेलंग की कविताओं में वैचारिकता की जो सक्रियता है, वह इन कविताओं को उल्लेखनीय बनाती है | राग तेलंग की इन कविताओं में राजनीतिक संदर्भ तो व्यक्त होता है, लेकिन वह यहाँ इस स्वाभाविकता से व्यक्त होता है कि विचार और संवेदना का पारंपरिक द्वैत यहाँ व्यर्थ हो जाता है लेकिन जिन्हें किसी निश्चित विचारधारा का समर्थन या आश्वासन प्राप्त नहीं है | जाहिर है कि एक कवि के रूप में उनके कुछ आग्रह और सरोकार हैं जो उनकी इन कविताओं में स्पष्ट रूप से झलकते हैं | इनकी किसी न किसी तरह की परंपरा उनके कृतित्त्व में खोजी जा सकती है, यह मैं इसलिए नहीं कह सकता क्योंकि इनसे पहले की उनकी कविताएँ मैंने नहीं देखी हैं | मैं विश्वास जरूर कर  सकता हूँ कि 'समकालीन भारतीय साहित्य' के नये अंक में प्रकाशित राग तेलंग की कविताएँ उनकी पिछली कविताओं से आगे की कविताएँ ही होंगी |

3 comments:

  1. आदरणीय मुकेष भाई,
    सप्रेम नमस्कार

    इतनी दूर बैठे हुए अहसास हुआ कि किसी ने मेरी पीठ थपथपाई है । हालांकि मैं कविता लेखन व्यक्तिगत आकांक्षाओं को पुष्ट करने के इरादे से नहीं करता हूं । फिर भी अगर मेरी सोच की वेवलेंग्थ अगर किसी से मिलती है तो यह कविता जैसे माध्यम की ही सफलता है । आज किसी भी रचना की सामयिकता और समकालीनता राजनीति से निरपेक्ष होकर संभव ही नहीं । हर रचना कालजयी तब ही होगी जब वह अपने काल की राजनीति के पार देखने में सक्षम होगी । आपके ब्लाॅग की पोस्टों के माध्यम से दिमाग के किवाड़़ पर खटखटाहट सुनाई होती है । अशेष शुभकामनाएं ।

    सादर,


    राग तेलंग

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  2. जगदीश नारायणFebruary 1, 2010 at 5:16 PM

    राग तेलंग की कविताओं को आपने सही संदर्भ में याद किया है | उनकी कुछेक कविताओं को पढ़ने का मौका मुझे भी मिला है और मैंने पाया है कि उनकी कविताएँ उस व्यक्ति की कविताएँ हैं जो 'घटित' को भी जानता है तथा उसके कारण को भी | राग तेलंग का कवि आज की हर 'बहस' को अपने से जोड़ कर देखता है क्योंकि वह बहस की पृष्ठभूमि में खड़े लोगों को पहचानता है |

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  3. श्रीकांत कक्कड़February 1, 2010 at 8:04 PM

    किसी भी कविता में राजनीतिक संदर्भ तब आएगा ही, जब उसका रचयिता उपेक्षित समस्याओं और अपनी जरूरतों के सामने खड़ा होगा | समस्याएँ हमेशा होती हैं, लेकिन हर लेखक उनका सामना करने का साहस नहीं कर पाता या फिर उसे अपने लिये एक निजी खतरे के रूप में देखता है | ज्यादा से ज्यादा वह यह कर लेता कि समस्याओं को झेलता है और उनसे पैदा हुए अपने दुःख व संताप को व्यक्त कर के संतुष्ट हो लेता है | राग तेलंग की 'एक दिन' शीर्षक कविता ने यदि आपको बेचैन किया तो शायद इसीलिए क्योंकि उसमें चीजों को बदलने की अकुलाहट और इच्छा अभिव्यक्त हुई है | राग तेलंग की कविताओं में चीजों को बदलने की जो आकांक्षा तथा उत्साह दिखता है, वह उनकी कविताओं को खास बनाता है |

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