'प्रसंग' द्वारा 'समकालीन हिंदी कविता : उपलब्धियां और चुनौतियाँ' विषय पर दिल्ली में आयोजित सेमिनार में भाग लेने भोपाल से आये वरिष्ठ समीक्षक उमाशंकर चौधरी तथा वाराणसी से पधारे सृजनात्मक साहित्य के अध्येता देवीप्रसाद अवस्थी ने आपस की अनौपचारिक चर्चा में आशमा कौल की कविताओं पर गंभीर और सार्थक बात की, जिसका एक सिरा कश्मीरी कविता की पहचान को छूने का प्रयास कर रहा था, तो दूसरा सिरा आशमा कौल की कविता के काव्य-संस्कार और उसकी संवेदना को रेखांकित कर रहा था | आशमा कौल की कविताओं को मैंने भी पढ़ा है तथा उनमें व्यक्त हुए सामयिक बोध से प्रभावित होकर उन्हें बार-बार पढ़ना चाहा है | किंतु देवीप्रसाद अवस्थी और उमाशंकर चौधरी के बीच हुई बातचीत ने आशमा कौल की कविताओं को देखने का एक नया नजरिया दिया है | यह एक संयोग ही रहा कि देवीप्रसाद अवस्थी और उमाशंकर चौधरी के बीच हुई बातचीत टेप हो गई थी | वह टेप मुझे मिल भी गया | दोनों के बीच आशमा कौल की कविता को लेकर क्या बात हुई, यह आप भी देखें / पढ़ें :
देवीप्रसाद अवस्थी : उमाशंकर जी, आशमा कौल की कविताएँ आपने पढ़ी है क्या ?
उमाशंकर चौधरी : हाँ, उनके दो कविता संग्रह 'अनुभूति के स्वर' तथा 'अभिव्यक्ति के पंख' हैं, जिन्हें मैंने पढ़ा है | लेकिन यह पूछने की ज़रूरत आपको क्यों पड़ी ?
देवीप्रसाद अवस्थी : पिछले दिनों ही मैंने एक प्रकाशक के सूचीपत्र में उनके यहाँ से प्रकाशित हो रहे एक नए कविता संग्रह का नाम देखा, जिसने मुझे एकदम से आकर्षित किया | 'बनाए हैं रास्ते' उसका नाम है | मेरा अनुभव है कि कविता संग्रह का नाम प्रायः संग्रह की किसी कविता का शीर्षक होता है या कविता की किसी पंक्ति से लिया गया होता है | इस शीर्षक ने ही मुझे उस संग्रह की कविताओं को पढ़ने के लिये उत्सुक व प्रेरित किया | लेकिन उक्त संग्रह तो अभी प्रकाशित होना है, इसलिए उसका इंतजार करना होगा | मैंने सोचा कि तब तक लेखक की पहले यदि कोई कविताएँ प्रकाशित हुई हों तो उनको देखा/पढ़ा जाये | मैंने पता किया कि 'बनाये हैं रास्ते' की रचनाकार आशमा कौल के दो कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं | मैं लेकिन उनका संग्रह 'अभिव्यक्ति के पंख' ही जुटा सका | इस संग्रह की कविताओं को पढ़कर मैं इतना अभिभूत हुआ कि कई लोगों से उन कविताओं का जिक्र कर चुका हूँ | बहुत समय बाद आज आप मिले तो एकदम से ख्याल आया कि आपसे भी पूछूं कि क्या आपने आशमा कौल की कविताएँ पढ़ी हैं | यदि आप इंकार करते तो मैं आपको उनकी कविताएँ पढ़ने का सुझाव देता | मैं आपको कविता का एक गंभीर पाठक मानता हूँ, इसलिए मैंने यह जरूरी समझा कि आपको बताऊँ कि आपको आशमा कौल की कविताएँ अवश्य ही पढ़नी चाहिए |
उमाशंकर चौधरी : आशमा कौल की कविताओं ने जिस तरह से आपको प्रभावित किया है, उसी तरह से मैं भी उनकी कविताओं का कायल हुआ हूँ | तिक्त अनुभवों के बीच से उठी आशमा की कविताएँ जीवन के अनमोल तत्त्व को बचाए रखने की विकलता की कविताएँ हैं | उनकी कविताएँ एक पाठक के रूप में हमें कश्मीरी कविता से जोड़ने का काम भी करती हैं |
देवीप्रसाद अवस्थी : आशमा की कविताओं के संदर्भ में आपने यह बहुत महत्त्वपूर्ण बात कही है | कश्मीरी कविता के आधुनिक युग की शुरूआत का परिदृश्य सृजन के नए उल्लास से, नई आशा से स्पंदित था | बीसवीं शताब्दी के दूसरे-तीसरे दशक में कवि गुलाम अहमद महजूर कश्मीरी कविता को मध्ययुगीन चेतना से मुक्त कर के एक नई दिशा देने के प्रयत्नों में रत थे | महजूर नए और पुराने के बीच एक सेतु के रूप में आगे आये | वे कश्मीरी अस्मिता के कवि थे और उसकी आकांक्षाओं के साथ ऐसी गहराई से जुड़े थे जिसकी मुक्ति की आवाज उन्होंने अपने गीतों और अपनी गजलों में उठाई | गुलाम अहमद महजूर के अलावा अब्दुल अहद आजाद, मास्टर जिंदा कौल, मिर्जा गुलाम हसन बेग आरिफ, दीनानाथ कौल नादिम, रहमान राही, अमीन कामिल, चमनलाल चमन आदि तमाम प्रख्यात कवियों ने कश्मीरी कविता को जो पहचान और समृद्वता दी, आशमा कौल की कविताएँ उसी पहचान और समृद्वता को आगे बढ़ाने का काम करती हैं |
उमाशंकर चौधरी : भाषा और शिल्प के संदर्भ में आशमा कौल की कविताएँ मुझे दीनानाथ कौल नादिम की कविताओं की याद दिलाती हैं |
देवीप्रसाद अवस्थी : यही मैं कहने जा रहा था | आपने भी गौर किया होगा कि कश्मीरी शब्दों के आंतरिक संगीत के प्रति विशेष रूप से सचेत रहने के कारण नादिम साहब ने कविता की सांगीतिक लय को नहीं छोड़ा | आशमा की कविताओं को पढ़ते हुए भी मुझे उनमें एक सांगीतिक लय सुनाई पड़ती है | दिलचस्प संयोग है कि इस दृष्टी से नादिम साहब की कविताओं का टोन आधुनिक कश्मीरी कविता से बहुत कम मेल खाता है; आशमा की कविताओं का टोन तो बिल्कुल ही अलग है |
उमाशंकर चौधरी : यह संयोग इसलिए और दिलचस्प है कि इसका आधार नादिम ने करीब पांच दशक पहले जब रखा था, आशमा तब शायद पैदा भी नहीं हुई होंगी | पचास के दशक में नादिम का स्वर एक निर्बाध निर्झर की तरह पूरे कश्मीर को अपने साथ बहा ले गया था | भाव, भाषा, शिल्प, संवेदना - हर क्षेत्र में और हर स्तर पर नादिम ने कश्मीरी कविता की पूरी दिशा ही बदल दी थी | नादिम के बाद कश्मीरी कविता ने बहुतेरे उतार-चढ़ाव देखे हैं और एक लम्बी यात्रा कर डाली है | आशमा तो इस यात्रा में बहुत बाद में शामिल हुई हैं |
देवीप्रसाद अवस्थी : आशमा की कविताओं को हम सिर्फ कश्मीरी कविता के संदर्भ में ही देखने-पहचानने की कोशिश क्यों कर रहे हैं ? मुझे तो आशमा की कविता एक खास ढंग की कविता जान पड़ती है जिसमें अनुभव-वस्तु या जीवन-यथार्थ के सूक्ष्म रूपों की विडम्बनामूलक पहचान दिखाई देती है | अपनी 'बूँदें' शीर्षक कविता में उन्होंने पतझड़ में भी बूंदों के गिरने की स्थितियों का जो आख्यान प्रस्तुत किया है, उसमें जीवन-यथार्थ के सूक्ष्म रूपों के प्रति सजगता को पहचाना जा सकता है |
उमाशंकर चौधरी : मैं उनकी 'शून्य' व 'जो मैं हूँ, वह मैं नहीं हूँ' शीर्षक कविताओं को यहाँ याद करना चाहूँगा, जो उनके संग्रह 'अभिव्यक्ति के पंख' में शायद प्रकाशित हुई हैं |
देवीप्रसाद अवस्थी : हाँ, यह दोनों कविताएँ 'अभिव्यक्ति के पंख' में हैं |
उमाशंकर चौधरी : उक्त दोनों कविताएँ भाषा के कारण मुझे उल्लेखनीय लगी हैं | आशमा की कविताओं की भाषा उनके द्वारा निर्मित की गई उनकी अपनी भाषा लगती है | उन्होंने अपनी भाषा को संवेदना से जोड़ने का भरसक प्रयत्न किया है | 'जो मैं हूँ, वह मैं नहीं हूँ' शीर्षक कविता मैंने जब पहली बार पढ़ी थी, तो मुझे आभास हुआ था कि संवेदना की विराटता कई बार भाषा में भी अपने को प्रक्षेपित करने की अनजाने ही अकल्पनीय सामर्थ्य उत्पन्न कर देती है | ऐसी स्थिती में भाषा के प्रक्षेपण का कारण स्वयं भाषा और लेखक कम, संवेदना अधिक होती है; संवेदना के बिना बात उस मुकाम तक नहीं जा पाती | 'जो मैं हूँ, वह मैं नहीं हूँ' की दो पंक्तियाँ मैं नहीं भूल पाता हूँ - 'काँटों पर कोई जायेगा / जायेगा कोई कलियों पर' | बात बहुत सामान्य सी है, लेकिन आशमा ने अपनी कविता में इस बात को जिस तरह से कहा है, वह गहरे तक छूती और बेधती है |
देवीप्रसाद अवस्थी : आशमा की कविताओं की भाषा काव्य-संस्कार से जुड़ी भाषा है, जिसके स्रोत मुझे कश्मीरी कविता से जुड़ते लगते हैं | भाषा के प्रति उदासीन कवि न तो संवेदना को बढ़ा सकता है और न भाषा को |
उमाशंकर चौधरी : मुझे लगता है कि आशमा ने इस बात को समझा / पहचाना है | अपने पहले कविता संग्रह 'अनुभूति के स्वर' से अपने दूसरे कविता संग्रह 'अभिव्यक्ति के पंख' तक की अपनी यात्रा में आशमा ने भाषा के प्रति अपनी जागरूकता को प्रकट किया है |
देवीप्रसाद अवस्थी : आशमा की कविताओं को लेकर आपने जो कुछ भी कहा है, उससे उनकी कविताओं के प्रति मेरी उत्सुकता और बढ़ी है | आशमा के तीसरे कविता संग्रह 'बनाये हैं रास्ते' को मैं अवश्य ही पढ़ना चाहूँगा |
उमाशंकर चौधरी : हम उम्मीद कर सकते हैं कि जल्दी ही प्रकाशित होने वाले आशमा कौल के तीसरे कविता संग्रह 'बनाये हैं रास्ते' की कविताओं में जीवन-यथार्थ के और विविधतापूर्ण रूपों से हमारा परिचय होगा |
आशमा कौल के तीसरे कविता संग्रह 'बनाये हैं रास्ते' के जल्द प्रकाशित होने के बारे में मैंने भी पढ़ा है | मैं भी उसके प्रकाशित होने तथा पुस्तकों की दुकानों पर उसके उपलब्ध होने का इंतजार कर रहा हूँ | आशमा कौल के पिछले कविता संग्रह 'अभिव्यक्ति के पंख' को पढ़ने का सौभाग्य मुझे भी मिला है: और मैं याद कर सकता हूँ कि उनकी कविताओं को पढ़कर मेरे मन में भी कुछ उसी तरह के ख्यालात आये थे जैसे कि देवीप्रसाद अवस्थी तथा उमाशंकर चौधरी ने व्यक्त किए हैं | आशमा कौल की कविता पर इनके विचारों को पढ़ कर मुझे इस कारण भी अच्छा लगा कि आशमा कौल की कविताओं को पढ़ कर जैसा मैंने महसूस किया था वैसा और पाठकों ने भी - कविता की गंभीर समझ रखने वाले लोगों ने भी महसूस किया |
ReplyDeleteदेवीप्रसाद अवस्थी और उमाशंकर चौधरी के बीच हुई बातचीत दिलचस्प भी लगी और ज्ञानवर्धक भी | मैं न तो कश्मीरी कविता से परिचित हूँ और न आशमा कौल की कविता को पढ़ सका हूँ | लेकिन देवीप्रसाद अवस्थी और उमाशंकर चौधरी के बीच हुई बातचीत ने मुझे प्ररित किया है कि मैं दोनों के बारे में जानूं | आपकी इस प्रस्तुति ने, मैं समझता हूँ कि सिर्फ मुझे ही नहीं, बल्कि और भी कई लोगों को प्रेरित किया होगा | देवीप्रसाद अवस्थी और उमाशंकर चौधरी के बीच हुई बातचीत को प्रस्तुत करके आपने एक उल्लेखनीय काम किया है |
ReplyDelete'अभिव्यक्ति के पंख' मैंने संभवतः डेढ़ या दो वर्ष पहले पढ़ा था | देवीप्रसाद अवस्थी और उमाशंकर चौधरी जैसे वरिष्ट समीक्षकों की आशमा कौल के उक्त कविता संग्रह पर हुई बातचीत को पढ़ा तो उक्त संग्रह की कविताएँ मेरे जहन में ऐसे घूम गईं जैसे मैंने उन्हें अभी कल ही पढ़ा हो | आशमा की कविताएँ मुझे आत्म की उधेड़बुन की कविताएँ लगीं थीं | जीवन की आपाधापी के बीच संवेदना को न केवल बचाए रखने बल्कि उसे अभिव्यक्त करने का जो कौशल आशमा ने अपनी कविताओं में दर्शाया, उसे देख कर मुझे विश्वास हुआ था कि उनकी कविताएँ पाठकों को गहरे तक प्रभावित करेंगी | देवीप्रसाद अवस्थी और उमाशंकर चौधरी के बीच हुई बातचीत को पढ़ते हुए मैंने अपने विश्वास को सच होते हुए पाया |
ReplyDeleteआशमा कौल की कविताओं से मैं परिचित नहीं हूँ | देवीप्रसाद अवस्थी और उमाशंकर चौधरी के बीच हुई बातचीत को पढ़कर लेकिन मुझे इस बात का अफ़सोस हुआ है कि आशमा कौल की कविताएँ आखिर मैं क्यों नहीं देख सका हूँ | उनकी कविताओं को मैं अवश्य ही पढ़ना चाहूँगा | उनके तीसरे कविता संग्रह 'बनाये हैं रास्ते' के जल्दी प्रकाशित होने का मुझे भी इंतजार है |
ReplyDeleteदेवीप्रसाद अवस्थी और उमाशंकर चौधरी की बातचीत ने एक साथ कश्मीरी कविता से और आशमा कौल की कविता से परिचित कराने का काम किया है | दोनों के बीच हुई बातचीत को पढ़वाने के लिये आपका भी आभार |
ReplyDeleteदेवीप्रसाद अवस्थी और उमाशंकर चौधरी ने अपनी बातचीत में दीनानाथ कौल नादिम को जिस सम्मान के साथ याद किया है, वह देख / पढ़ कर मुझे बहुत अच्छा लगा | नादिम साहब की कविता में कश्मीर की मिट्टी की गंध है, और यही उन की रचनात्मक उर्जा का सब से बड़ा स्रोत रहा है, और जिसके कारण उन्हें बड़ी पहचान मिली | वस्तुतः कश्मीरी अस्मिता का सबसे ज्यादा पता उन्हीं की कविताओं में मिलता है | उनकी सबसे बड़ी देन भाषा और शिल्प के क्षेत्र में रही है | कश्मीरी भाषा की शक्ति और संभावनाओं को पहचानने वाला और उसे विस्तार देने वाला उन जैसा कोई दूसरा नहीं हुआ है | वह वास्तव में सम्मान के साथ याद करने वाले कवि हैं | उन्होंने कविता लिखने वाले तमाम लोगों को प्रभावित और प्रेरित किया है | आशमा कौल की कविताएँ यदि नादिम साहब की कविताओं की याद दिलाती हैं, तो यह नादिम साहब के प्रति सच्ची श्रद्वांजलि होगी और आशमा कौल के लिये तो निश्चय ही गर्व की बात होगी |
ReplyDeleteदेवीप्रसाद अवस्थी और उमाशंकर चौधरी के बीच हुई बातचीत उत्सुकता जगाने वाली है | अच्छा होता कि आप उल्लिखित कश्मीरी कवियों और आशमा कौल की कविताएँ भी प्रस्तुत करते |
ReplyDeleteआशमा कौल की कविता पर केंद्रित देवीप्रसाद अवस्थी और उमाशंकर चौधरी की बातचीत दिलचस्प के साथ-साथ उपयोगी भी लगी | आशमा कौल का कविता संग्रह 'अभिव्यक्ति के पंख' मैंने पढ़ा है, और मेरे संग्रह में वह सुरक्षित भी रखा है | देवीप्रसाद अवस्थी और उमाशंकर चौधरी की बातचीत पढ़कर मैंने उसे एक बार फिर पढ़ा | आशमा कौल की कविताओं में व्यक्त हुई सहज भावनात्मक व संवेदनात्मक बेचैनी को मैंने पहले भी प्रामाणिक पाया था, देवीप्रसाद अवस्थी और उमाशंकर चौधरी की बातचीत के संदर्भ के बाद दोबारा पढ़ने पर मैंने उन्हें और भी प्रामाणिक पाया |
ReplyDeleteआशमा कौल की कविता को लेकर देवीप्रसाद अवस्थी और उमाशंकर चौधरी के बीच हुई बातचीत को आपके ब्लॉग पर मैं आज पढ़ सका हूँ | इसे एक संयोग ही कहूँगा कि अभी आठ - दस दिन पहले ही हरियाणा साहित्य अकादमी की साहित्यिक मासिकी 'हरिगंधा' के नवंबर अंक में आशमा कौल की पांच कविताएँ पढी थीं | पांचों कविताओं में जो विविधतापूर्ण तेवर देखने को मिले, उसमें आशमा कौल की रचनात्मक क्षमताओं का परिचय पाया था | आशमा जी की कविताओं को मैंने पहली बार ही पढ़ा है | इसीलिये देवीप्रसाद अवस्थी और उमाशंकर चौधरी के बीच हुई बातचीत में मैंने आशमा जी की कविता - यात्रा का परिचय भी प्राप्त किया है |
ReplyDeleteआशमा कौल की कविताएँ पढ़ सकने का सौभाग्य - मौका मुझे नहीं मिल सका है | यूं तो और भी कई लोगों की कविताएँ मैंने नहीं पढ़ी हैं | लेकिन देवी प्रसाद अवस्थी और उमाशंकर चौधरी के बीच हुई बातचीत को पढ़ कर मुझे आशमा कौल की कविताओं को न पढ़ सकने का सचमुच बहुत अफ़सोस है | आपको आशमा जी की कविताएँ भी प्रकाशित करनी चाहिए और या यह सूचना देनी चाहिए की उनके कविता संग्रह कहाँ मिल सकते हैं |
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