Friday, November 13, 2009

मुक्तिबोध की जीवन-कथा को समझने की कोशिश करते हुए हम वास्तव में अपने समय की सच्चाई तथा उसकी चुनौतियों को भी पहचान सकेंगे

नवंबर की 13 तारीख के नजदीक आते-आते मैं बेचैनी, निराशा और उम्मीद के मिलेजुले दबावों के बीच अपने आप को घिरा पाने लगता हूँ | ऐसे क्षण यूं तो कई बार आते हैं, लेकिन नवंबर की 13 तारीख के नजदीक आते-आते मैं इन क्षणों को खास तौर से अपने ऊपर हावी होते हुए पाता हूँ | अब तो मुझे बल्कि ऐसा लगने लगा है कि जैसे मेरे लिए नवंबर की 13 तारीख और बेचैनी, निराशा व उम्मीद का मिलाजुला अहसास एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं | पिछले वर्षों में जब कभी भी किसी सन्दर्भ में जरूरत पड़ने पर मैंने हिंदी के बड़े कवि मुक्तिबोध के जन्म की तारीख बताई है, तो सुनने वालों ने हैरानी जताई कि मुझे तमाम लोगों के जन्म की तारीख याद कैसे रह जातीं हैं | उन्हें लगता रहा कि मुझे यदि मुक्तिबोध - जिनके नाम पर कभी कोई सामाजिक समारोह होता हुआ नहीं सुना, सामाजिक रूप से जिन्हें कभी याद करते हुए नहीं पाया गया, और जिन्हें गुजरे हुए भी चार दशक से अधिक का समय हो गया है - के जन्म की तारीख याद है तो न जाने कितने लोगों के जन्म की तारीखें याद होंगी | पर सच यह है कि तारीखें याद रखने के मामले में मैं बहुत ही कच्चा हूँ | मुझे खुद हैरानी है कि मुक्तिबोध के जन्म की तारीख मुझे कैसे और क्यों याद रह गई है | मैं मुक्तिबोध का कोई अध्येता नहीं हूँ, मैंने उनपर कुछ लिखा - लिखाया नहीं है, उनकी कविताएँ पढ़ने की कोशिश जरूर की है | उनकी कविताओं को, एक पाठक के रूप में, हमेशा ही एक कठिन चुनौती के रूप में पाया है | पर इस चुनौती से कभी बचने या भागने की कोशिश नहीं की - मुक्तिबोध से बस इतना ही रिश्ता है | मुझे भी लगता है कि इतना सा रिश्ता तो इस बात का कारण नहीं हो सकता है कि मुझे उनके जन्म की तारीख ऐसे याद हो जाये कि दूसरे लोग मेरे बारे में गलतफहमियां पाल लें |
मुक्तिबोध की मौलिक जीवन-दृष्टी और एक रचनाकार के रूप में उनकी असाधारण प्रतिभा तो मेरा उनका मुरीद बनने का कारण है ही; लेकिन मुझे लगता है कि उनके जीवन की जो कथा रही है तथा विलक्षण प्रतिभा के बावजूद अपने जीवन में उन्हें जिस उपेक्षा का सामना करना पड़ा है और जिसके बाद भी उन्होंने अपने रचनात्मक व विचारधारात्मक संघर्ष से पीठ नहीं फेरी - उसके कारण ही उनका व्यक्तित्त्व मेरी याद में जैसे रच-बस गया है | यही वजह है कि 13 नवंबर की जिस तारीख को गजानन माधव मुक्तिबोध पैदा हुए, उस 13 नवंबर की तारीख को मैं भूल नहीं पाता हूँ | इस तारीख के नजदीक आते-आते मैं बेचैनी और निराशा इसलिए महसूस करता हूँ कि मुक्तिबोध को जिन कारणों से उपेक्षा का शिकार होना पड़ा, वह कारण अभी भी न सिर्फ मौजूद हैं, बल्कि और ज्यादा मजबूत ही हुए हैं; तथा उम्मीद का अहसास इसलिए करता हूँ कि तमाम कारणों के बाद भी मुक्तिबोध को वह जगह आखिर मिली ही जिसके की वह वास्तव में हक़दार हैं | मुक्तिबोध अपने जीवन में प्रायः उपेक्षित ही रहे, उनका कवि-व्यक्तित्व विचारणीय कम ही समझा गया | अधिकतर लोगों के अनुसार इसका कारण यह रहा कि मुक्तिबोध न तो परंपरा की धारा में बहने को राजी हुए, और न ही वह किसी को खुश करने के झंझटों में पड़े; अपने किसी स्वार्थ या अपनी किसी सुविधा के लिए वह कभी भी कोई समझौता करने को तैयार नहीं हुए | अपनी उपेक्षा को उन्होंने अपने जैसे लोगों की नियति के रूप में ही देखा / पहचाना | उन्होंने कहा भी कि मौजूदा समाज - व्यवस्था में समाज और अपने प्रति ईमानदार व्यक्ति के सामने केवल दो ही विकल्प हैं - बेसबब जीना या सुकरात की तरह जहर पीना |
लेकिन यह मामले का सिर्फ एक पक्ष ही है | बाद में, अपनी मृत्यु के बाद मुक्तिबोध हालाँकि हिन्दी-साहित्य पर पूरी तरह छा गए, और उनका नाम लेना आधुनिकता, साहित्यिक समझदारी और जनपक्षधरता का लक्षण व सुबूत बन गया | इसलिए यह सवाल कुछ गहरी पड़ताल की मांग करता है कि मुक्तिबोध जीवन में अलक्षित क्यों रहे ? और यह सिर्फ मुक्तिबोध के साथ ही नहीं हुआ | देखा / पाया गया है कि प्रतिभाशाली कलाकार व्यावहारिक जीवन में प्रायः असफल ही रहते हैं, और उनकी प्रतिभा को बहुत बाद में पहचाना गया | कई एक मामले ऐसे भी मिलेंगे कि कलाकार की प्रतिभा को तो पहचाना गया, पर उन्हें ख्याति बाद में मिली | ख्याति दरअसल एक सामाजिक स्थिति है, सामाजिक स्वीकृति है | कलाकार अपनी मौलिकता या अद्वितीयता के कारण भी कभी - कभी ख्याति से वंचित रह जाते हैं | एक कवि के रूप में मुक्तिबोध ने लीक पर चलने से इंकार किया और उनकी कविता में संरचनात्मक मौलिकता, नवीनता और जटिलता को पाया गया | उनकी कविता की भाषा में सहज बोधगम्यता का अभाव भी पाया गया; और शायद यह भी एक कारण रहा कि मुक्तिबोध को सहज लोकप्रियता नहीं मिल पाई | दरअसल, मुक्तिबोध की कविता का वस्तुतत्त्व जिस तबके के लिए उपयोगी है, उनमें से अधिकांश लोगों के लिए उनकी कविता की भाषा सहज बोधगम्य नहीं है; और जिनके लिए उनकी कविता की भाषा बोधगम्य है उनमें से अधिकांश लोगों के लिए उनकी कविता में व्यक्त विचारधारा खतरनाक है| वस्तुतत्त्व और अभिव्यंजनाशिल्प के इस अंतर्विरोध के कारण भी मुक्तिबोध की कविता शीघ्र लोकप्रिय नहीं हो सकी |
मुक्तिबोध की कविता में जटिलता है, क्योंकि उनके जीवन में जटिलता थी | जटिलताएं ऐसे प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में होती हैं जो हर प्रकार के बाहरी दबावों के बावजूद अपने विचारों के लिए संघर्ष की जिंदगी जीता है | जिंदगी में सरलता या सपाटता वहां होती है जहाँ बाहरी और भीतरी द्वंद्व व तनाव का अभाव होता है | यूं तो अमूमन किसी भी व्यक्ति का जीवन संघर्षों से खाली नहीं है | यही कारण है कि प्रायः हर व्यक्ति का जीवन जटिलताओं का पुंज है | लेकिन संघर्ष और उससे उत्पन्न होने वाली जटिलताओं के कई रूप और स्तर होते हैं | अपने विचारों के लिए विरोधी शक्तियों से लगातार संघर्ष करना और उससे उत्पन्न पीड़ा को सहना एक बात है; और अपने अंतर्मन की कुंठाओं के द्वंद्व को ही जीवन - संघर्ष मान लेना तथा उससे उत्पन्न वेदना को आस्था की चीज समझकर उसका 'व्यवसाय' करना एक भिन्न किस्म की बात है | मुक्तिबोध जैसे कलाकार के जीवन को समझने का अर्थ है उनके जीवन के अस्तित्व - संघर्ष के प्रयासों को समझना | मुक्तिबोध की जीवन-कथा समाज और अपने प्रति ईमानदार संवेदनशील साहित्यकार के जीवन की एक अविस्मरणीय ट्रेजडी है | इस ट्रेजडी के लिए उत्तरदायी स्थितियों, शक्तियों और व्यक्तियों की खोज और पहचान मुक्तिबोध की जीवन-कथा को समझने के लिए अनिवार्य है | इस तरह से मुक्तिबोध की जीवन-कथा को समझने की कोशिश करते हुए हम वास्तव में अपने समय की सच्चाई तथा उसकी चुनौतियों को भी पहचान सकेंगे | मुक्तिबोध की जीवन-कथा इस बात का सुबूत ही है, जैसा कि हेमिंग्वे ने कहा है, कि 'मनुष्य को नष्ट किया जा सकता है, परन्तु उसको परास्त नहीं किया जा सकता|
यह बात आज, मुक्तिबोध के जन्मदिन के मौके पर, दोहराने से तमाम निराशाओं के बीच खासा बल मिलता है | 

3 comments:

  1. रामस्वरूप त्रिपाठीNovember 15, 2009 at 6:56 PM

    आपने ठीक कहा है कि मुक्तिबोध की जीवन-कथा को समझने की कोशिश करते हुए हम वास्तव में अपने समय की सच्चाई तथा उसकी चुनौतियों को भी पहचान सकेंगे | मुक्तिबोध जैसे शहीदों की चिताओं पर लगे मेलों में शामिल होना आसान है; उनकी स्मृति में सभा या समारोह आयोजित करना और श्रद्दा के फूल चढ़ाना और भी आसान है; उनके जीवन, साहित्य तथा संघर्ष का व्यापार करना लाभदायक है; लेकिन उनके सिद्वान्तों और संघर्षों को अपना बना कर शोषण व अन्याय के खिलाफ चलने वाली लड़ाई में शामिल होना बहुत मुश्किल है | मुक्तिबोध की सामाजिक चेतना, विश्व-दृष्टी और कला-दर्शन को ठीक से समझना आज भी चुनौती बना हुआ है | मुक्तिबोध का साहित्य मनोरंजक नहीं है, आत्मतोष की चीज नहीं है, केवल आनंदानुभूति का साधन भी नहीं है; बल्कि वह संवेदनशील व्यक्ति की चेतना को बेचैन करने वाला और जनपक्षीय संघर्षों को गति व शक्ति देने वाला साहित्य है |

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  2. उमेश सक्सेनाNovember 15, 2009 at 11:51 PM

    मुक्तिबोध को आपने जिस तरह याद किया, वह देख कर अच्छा लगा | आपने एक जरूरी काम किया है | मुक्तिबोध ने हमेशा वर्गबोध को एक स्पृहणीय मूल्य की तरह अपनी अनुभूतियों में जिया, उसे हमेशा एक शपथ तलवार की तरह अपने सीने पर रखा | वर्गबोध जैसे एक कसौटी हो जीवन संघर्ष को अर्थ देने के लिए | मुक्तिबोध हमें 'बताते' हैं कि हम एक ऐसे वर्ग समय में रह रहे हैं जिसमें अगर आगे बढ़ना है तो साथ-साथ, इकट्ठे होकर, संयुक्त होकर आगे बढ़ना है; जिसमें अकेले आगे बढ़ना एक अमानवीय कर्म है |

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  3. सुधीर चन्द्र पाण्डेयNovember 16, 2009 at 9:27 PM

    सभी मानते हैं कि मुक्तिबोध की कविता जटिल है | मुक्तिबोध की कविता को पढ़ना सचमुच श्रमसाध्य है | किंतु श्रम कर लेने के बाद पाठक जितना हतप्रभ व चमत्कृत महसूस करता है, वह सिर्फ मुक्तिबोध की कविता में ही संभव है | मैंने पाया है कि मुक्तिबोध की कविता को मैं पढ़ने की तरह नहीं पढ़ सकता हूँ, लेकिन फिर भी उसे पढ़ने का उत्साह मैं हमेशा अपने भीतर पाता हूँ; क्योंकि उसे पढ़ चुकने के बाद कुछ पा लेने का जो संतोष मिलता है, वह एक विरला ही अनुभव होता है | मुझे लगता है कि इस 'अनुभव' के कारण ही, जटिल होने के बावजूद मुक्तिबोध की कविता ने एक बड़े पाठक समूह को अपनी ओर आकर्षित किया है |

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